Wednesday, August 29, 2018

'मानवाधिकार कार्यकर्ताओं' की गिरफ़्तारी: जो अब तक पता है

णे पुलिस ने मंगलवार को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया जबकि अदालत के आदेश की वजह से इनमें से एक को घर में नज़रबंद कर दिया गया.
ये हैं वामपंथी विचारक और कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस.
पुलिस अधिकारी गिरफ़्तार लोगों को 'माओवादी हिंसा का दिमाग़' बता रहे हैं.
पुलिस का ये भी कहना है कि भीमा-कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए भी इन लोगों की भूमिका की जाँच की जा रही है.
ये कार्रवाई आतंक निरोधी कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 505 (1)(बी), 117, 120 (बी) और 34 के तहत की गई.
  • इस मामले में इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य लोगों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. याचिका में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की गई है.
  • याचिका में मामले की स्वतंत्र जाँच कराने की मांग की गई है और कहा गया है कि गिरफ़्तारियाँ विरोध की आवाज़ को दबाने की कोशिश है.
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि आयोग को ऐसा लगता है कि इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस कारण ये मानवाधिकार उल्लंघन का मामला हो सकता है.
  • एनएचआरसी ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है.पिछले साल 31 दिसंबर को यलगार परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद में माओवादियों की कथित भूमिका की जांच में लगी पुलिस ने कई राज्यों में सात कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी की और पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया.
    इस परिषद का आयोजन पुणे में 31 दिसंबर 2017 को किया गया था और अगले दिन 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलितों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में पुणे के क़रीब भीमा कोरेगांव गांव में दलित और अगड़ी जाति के मराठाओं के बीच टकराव हुआ था.
    भीमा कोरेगांव में दलितों पर हुए कथित हमले के बाद महाराष्ट्र के कई इलाकों में विरोध-प्रदर्शन किए गए. दलित समुदाय भीमा कोरेगांव में हर साल बड़ी संख्या में जुटकर उन दलितों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1817 में पेशवा की सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे.ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था. बाबा साहेब आंबेडकर खुद 1927 में इन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने वहां गए थे.
    मंगलवार सबेरे छापेमारी के बाद जो लोग गिरफ़्तार किए गए, उनमें हैदराबाद से वरवर राव, मुंबई में वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा, फ़रीदाबाद में सुधा भारद्वाज और नई दिल्ली में गौतम नवलखा शामिल हैं. रांची में स्टैन स्वामी और गोवा में आनंद तेलतम्बदे के घर पर भी छापा मारा गया.
    सुधा भारद्वाज एक वकील और ऐक्टिविस्ट हैं. वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के तौर पर पढ़ाती हैं. सुधा ट्रेड यूनियन में भी शामिल हैं और मज़दूरों के मुद्दों पर काम करती हैं. उन्होंने आदिवासी अधिकार और भूमि अधिग्रहण पर एक सेमिनार में हिस्सा लिया था. वो दिल्ली न्यायिक अकादमी का भी एक हिस्सा हैं.
    वरवर राव
    वरवर पेंड्याला राव वामपंथ की तरफ़ झुकाव रखने वाले कवि और लेखक हैं. वो 'रेवोल्यूशनरी राइटर्स असोसिएशन' के संस्थापक भी हैं. वरवर वारंगल ज़िले के चिन्ना पेंड्याला गांव से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें आपातकाल के दौरान भी साज़िश के कई आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था, बाद में उन्हें आरोपमुक्त करके रिहा कर दिया था.
    वरवर की रामनगर और सिकंदराबाद षड्यंत्र जैसे 20 से ज़्यादा मामलों में जांच की गई थी. उन्होंनें राज्य में माओवादी हिंसा ख़त्म करने के लिए चंद्रबाबू सरकार और माओवादी नेता गुम्माडी विट्ठल राव ने मिलकर मध्यस्थता की थी. जब वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार ने माओवादियों ने बातचीत की, तब भी उन्होंने मध्यस्थ की भूमिका भी निभाई.
    गौतम नवलखा एक मशहूर ऐक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकार के मुद्दों पर काम किया है. वे अंग्रेज़ी पत्रिका इकोनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) में सलाहकार संपादक के तौर पर भी काम करते हैं.
    नवलखा लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े हैं. नवलखा ने पीयूडीआर के सचिव के तौर पर भी काम किया है और इंटरनेशनल पीपल्स ट्राइब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स ऐंड जस्टिस इन कश्मीर के संयोजक के तौर पर भी काम किया है.
    अरुण फ़रेरा
    मुंबई के बांद्रा में जन्मे अरुण फ़रेरा मुंबई सेशंस कोर्ट और मुंबई हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं. वो अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट और देशद्रोह के अभियोग में चार साल जेल में रह चुके हैं.
    अरुण फ़रेरा इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लॉयर्स के कोषाध्यक्ष भी हैं.
    फ़रेरा भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में गिरफ़्तार हुए दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले के पक्ष में भी अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं. मुंबई के गोरेगांव और जोगेश्वरी में 1993 में हुए दंगों के पीड़ितों के बीच काम करने के बाद, अरुण फ़रेरा का रुझान मार्क्सवाद की ओर बढ़ा था. इन दंगों के बाद उन्होंने देशभक्ति युवा मंच नाम की संस्था के साथ काम करना शुरू कर दिया. इस संस्था को सरकार माओवादियों का फ़्रंट बताती थी.
    वरनॉन गोंज़ाल्विस
    मुंबई में रहने वाले वरनॉन गोंज़ाल्विस लेखक-कार्यकर्ता हैं. वो मुंबई विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट हैं और मुंबई के कई कॉलेजों में कॉमर्स पढ़ाते रहे हैं. उन्हें 2007 में अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था. वो छह साल तक जेल में रहे थे.
    गोंज़ाल्विस को नागपुर के ज़िला और सत्र न्यायालय ने यूएपीए की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी पाया था. वरनॉन की पत्नी सुज़न अब्राहम भी मानवाधिकार मामलों की एक वकील हैं. वरनन गोंज़ाल्विस के बेटे सागर अब्राहम गोंज़ांलविस ने बताया कि सब लैपटाप वगैरह के साथ बहुत सारे साहित्य साथ ले गये.

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