Friday, August 31, 2018

100 दिनों में 50 मंदिर, मस्जिद और चर्च गए कुमारस्वामी

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने 100 में 50 का स्कोर बनाकर एक नया रिकॉर्ड बनाया है. ये सुनने में क्रिकेट मैच के स्कोरकार्ड जैसा लग सकता है लेकिन है नहीं.
इसका मतलब ये है कि उन्होंने जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन वाली अपनी सरकार के पहले 100 दिनों के भीतर 50 मस्जिदों, चर्चों और मंदिरों में दर्शन किए.
कुमारस्वामी के समर्थक और सहयोगी, जो ख़ुद भी काफ़ी धार्मिक हैं, वो भी इससे हैरान हैं.
मुख्यमंत्री 100 दिनों में 47 मंदिरों, एक दरगाह, एक मस्जिद और एक चर्च जा चुके हैं.
ऐसा नहीं है कि कुमारस्वामी हर दूसरे दिन मंदिर गए बल्कि ऐसा हुआ कि कई बार वो एक दिन में दो, तीन या चार मंदिर गए.
धार्मिक स्थलों पर जाने में उनकी सक्रियता कर्नाटक के सियासी हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है. बहुत से लोग उनकी आलोचना भी कर रहे हैं.
इन दिनों बेंगलुरु में सबसे ज़्यादा सुना जाने वाला कमेंट है- हम भी धार्मिक हैं लेकिन रोज़ कूद-कूदकर मंदिर नहीं चले जाते.
तो अब सवाल ये है कि कुमारस्वामी जैसे नेता मंदिरों-मस्जिदों में इतना क्यों जाते हैं?
संस्कृत के प्रोफ़ेसर एमए अलवर कहते हैं, "उन्हें अपनी सत्ता छिनने का डर होता है और जब इंसान का भविष्य अनिश्चित होता है तो हम मनोवैज्ञानिक तौर पर कोई दैवीय मदद ढूँढते हैं. वो किसी संन्यासी के पास जा सकते हैं, किसी दरगाह में जा सकते हैं या किसी चर्च में जा सकते हैं."
केरल के ज्योतिष विष्णु पूचक्कड़ के मुताबिक़, "जब लोग दुविधा में होते हैं तो किसी गुरु या ज्योतिष के पास जाते हैं. पुराने ज़माने में राजा भी अपने गुरु या ज्योतिषी से सलाह लेते थे. ठीक उसी तरह नेता मौजूदा वक़्त में पूजा-पाठ करते हैं."
हालांकि, विष्णु ये भी मानते हैं कि आज भले ही लोग ज़्यादा पूजा-पाठ करने लगे हों, लेकिन सब कुछ बहुत व्यावसायिक हो गया है.
उन्होंने कहा, "शास्त्रों की सही ढंग से व्याख्या होनी बहुत ज़रूरी है. ज्योतिषी आपको सलाह दे सकता है लेकिन आपके अंदर आस्था होनी ज़रूरी है."
विष्णु कहते हैं, "कुछ लोग सिर्फ़ डर की वजह से मंदिर-मस्जिद जाते हैं. कुछ लोग सही रास्ता ढूंढने जाते हैं. फल दोनों को ही मिलता है. डरे हुए लोगों को मानसिक शांति मिलती है और रास्ता ढूंढने वालों को रास्ता. लेकिन किसी भी प्रार्थना के पूरे होने के लिए समर्पण होना चाहिए. जो पूजा कराता है उसके मन में भी आस्था होनी बहुत ज़रूरी है."
लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं होता. विष्णु के मुताबिक़, इंसान को अपनी बुद्धि से सही फ़ैसले भी लेने चाहिए.
डॉ. श्रीधर मूर्ति कहते हैं, "नेताओं में असुरक्षा की भावना बहुत ज़्यादा होती है. लेकिन धार्मिक क्रिया को किसी तरह परिभाषित नहीं किया जा सकता. मंदिर जाने को धार्मिक कैसे कहा जा सकता है? भगवान तो सर्वव्यापी हैं, मेरे घर में भी हैं. तो मुझे मंदिर, मस्जिद या चर्च क्यों जाऊं?"
विष्णु भी डॉ. मूर्ति से सहमति जताते हुए कहते हैं, "भगवान हमारे दिलों में हैं."
कुमारस्वामी के बारे में पूछने पर विष्णु कहते हैं, "मैं कह नहीं सकता कि कुमारस्वामी के मन में क्या है. पहले राजा अपने राज्य के लिए पूजा-पाठ करते थे. आज भी ये राज्य के लिए हो सकता है. भगवान की पूजा कई रूपों में हो सकती है."
कुमारस्वामी का इस तरह मंदिर-मंदिर घूमना इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि वह अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की तरह बिल्कुल भी नहीं थे. एचडी देवगौड़ा की छवि एक धार्मिक और ज्योतिष में विश्वास रखने वाले नेता की रही है.
कुमारस्वामी के कुछ क़रीबी सहयोगियों ने नाम ज़ाहिर न होने की शर्त पर बताया था कि उन्होंने कसम खाई थी कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनने लायक सीटें नहीं मिलीं तो वो राजनीति छोड़ देंगे.
ख़ुशकिस्मती से कर्नाटक चुनाव के नतीजों में नाटकीय बदलाव देखने को मिला और कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया.
उनके एक क़रीबी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, "मुझे लगता है कि इस घटना के बाद उनमें काफ़ी बदलाव हुआ. उन्होंने सभी धार्मिक जगहों पर जाना शुरू कर दिया."

No comments:

Post a Comment